परिचय

आध्यात्मिक विश्वविद्यालय

आध्यात्मिक विश्वविद्यालय में आपका स्वागत है, आध्यात्मिक विश्वविद्यालय किसी भी व्यक्ति को आध्यात्म या सत्य-कर्म का मार्ग प्रदर्शित नहीं करता है और नाहीं किसी भी व्यक्ति को आध्यात्म या सत्य-कर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा प्रदान करता है किन्तु जो व्यक्ति स्वयं अपनी इच्छा से सत्य-कर्म के मार्ग पर चलने के इच्छुक है या जो व्यक्ति सत्य-कर्म के मार्ग से विचलित होकर भटक गए है या फिर जो व्यक्ति किसी भी प्रकार के समस्या से परेशान है तो ऐसे व्यक्तियों को सत्य-कर्म का मार्ग प्रदर्शित करना ही आध्यात्मिक विश्वविद्यालय का मुख्य कार्य, लक्ष्य एवं उद्देश्य है।

सत्य-कर्म के मार्ग पर चलने से कोई भी व्यक्ति साधु-संत या सन्यासी नहीं बनते है बल्कि सभी प्रकार के सांसारिक एवं भौतिक सुखों का सम्पूर्ण आनंद लेते हुए अंत में मोक्ष या शांति प्राप्त करते है जो किसी भी असत्य-कर्म करने वाले व्यक्ति के लिए दुर्लभ या असंभव है, प्रारंभ में सत्य-कर्म के मार्ग पर चलने से कुछ समस्या आती है जो असत्य-कर्म के फल स्वरुप सामने नजर आते है किन्तु निरंतर अपने आत्म-प्रयास से व्यक्ति अपने जीवन के समस्याओं के निल नदी को सरलता से पार करके अपने परिवार एवं बच्चों के साथ दीर्घ आयु तक सुखमय जीवन व्यतीत करते है।

श्री अजीत कुमार
आध्यात्मिक मार्गदर्शक

मानव-कर्म

सुख, समृद्धि एवं शांति का मार्ग

किसी भी व्यक्ति की आत्मा सत्य-कर्म करने के उद्देश्य से मानव रूपी शरीर या वस्त्र को अपनी इच्छा से धारण करते है किन्तु मानव रूपी शरीर या वस्त्र में जन्म लेने के बाद शिशु अवस्था में अस्मरण शक्ति नहीं होने के कारण अपने आत्मा एवं आत्मा के शक्ति के साथ सत्य-कर्म का ज्ञान भी विलुप्त हो जाता है जिसके कारण कोई भी व्यक्ति बाल अवस्था से असत्य-कर्म करने के लिए बाध्य हो जाते है यदि किसी व्यक्ति को बाल अवस्था से आत्म-शक्ति का ज्ञान प्रदान किया जाए तो वह व्यक्ति अपने आत्मा-शक्ति से सत्य-कर्म करने में सक्षम हो जाते है किन्तु जो व्यक्ति पूर्व जन्म में सत्य-कर्मी होते है एवं सत्य-कर्म का फल शेष रह जाता है ऐसे व्यक्ति जन्म लेने के बाद अपने आत्मा-शक्ति का ज्ञान नहीं होने पर भी प्रकृति के द्वारा सत्य-कर्म करने के लिए बाध्य रहते है एवं उचित समय आने पर ऐसे व्यक्ति को स्वतः अपने आत्म-शक्ति का ज्ञान प्राप्त हो जाता है।

मानव-कर्म : किसी भी व्यक्ति के द्वारा अपनी योग्यता एवं सामर्थ के अनुसार अपना या अपने परिवार का भरण-पोषण एवं उन्नति के लिए किये गए कार्य को मानव-कर्म कहते है और मानव-कर्म मुख्य रूप से दो प्रकार के होते है पहला शुद्ध या पवित्र आत्माओं के द्वारा किया जाने वाला सत्य-कर्म है जिसका फल अमृत के समतुल्य होता है और सत्य-कर्म के फल का सेवन करने से सुख, समृद्धि एवं शांति प्राप्त होता है एवं दूसरा अशुद्ध या अपवित्र आत्माओं के द्वारा किया जाने वाला असत्य-कर्म है जिसका फल विष के समतुल्य होता है और असत्य-कर्म के फल का सेवन करने से दुःख, दरिद्रता एवं चिंता प्राप्त होता है, किन्तु कुछ विशेष प्रस्थति में या किसी कार्य को सिद्ध करने हेतु या किसी अन्य कारण से एक शुद्ध एवं पवित्र आत्मा अपने शक्ति के द्वारा अपने या किसी दूसरे व्यक्ति के जीवन में दुःख या दरिद्रता या चिंता या बीमारी या समस्या स्वयं उत्तपन करते है।

मार्गदर्शन

आत्मा का शुद्धिकरण

जब हमारा घर गन्दा होता है तो हम उसे स्वयं साफ़ करते है, यदि हमारा शरीर गन्दा होता है तो उसे भी हम स्वयं साफ़ करते है और यदि हमारा कपड़ा गन्दा हो जाता है तो उसे भी हम स्वयं साफ़ करते है तथा विषम प्रस्थतियों में किसी अन्य व्यक्ति या नौकर से साफ़ करवाते है किन्तु अन्य व्यक्ति या नौकर गंदगी को साफ़ करने का ढोंग करते है और केवल अपना स्वार्थ सिद्ध करते है तथा हमारे घर, शरीर या कपड़ा की मुख्य गंदगी को छोड़ देते है तथा इस गंदगी से बीमारी होने का भय रहता है और यदि सही समय पर बीमारी का इलाज नहीं किया गया तो यह बीमारी आने वाले समय में एक लाईलाज बीमारी बन जाता है और इस लाईलाज बीमारी से हमारे शरीर की मृत्यु होने का भय रहता है।

किन्तु जब हमारी शुद्ध एवं पवित्र आत्मा गन्दा होता है तो इसे साफ़ करने के लिए अपने मतदान के द्वारा किसी अन्य व्यक्ति, नेता या मुखिया का चुनाव करते है और यह अन्य व्यक्ति, नेता या मुखिया हमारे शुद्ध एवं पवित्र आत्मा की मुख्य गंदगी असत्य-कर्म को साफ करने का ढोंग करते है और केवल अपना स्वार्थ सिद्ध करते है तथा हमारे शुद्ध एवं पवित्र आत्मा की मुख्य गंदगी असत्य-कर्म को छोड़ देते है तथा असत्य-कर्म के कारण हमारी आत्मा अशुद्ध एवं अपवित्र हो जाता है और यदि सही समय पर अशुद्ध एवं अपवित्र आत्मा को साफ़ नहीं किया गया तो हमारी शुद्ध एवं पवित्र आत्मा की शक्ति नष्ट हो जाता है और हमारे आत्म-शक्ति के नष्ट होने से शुद्ध एवं पवित्र आत्मा के मृत्यु होने का भय रहता है।

पाठ्यक्रम

स्वस्थ समाज का निर्माण

आत्म - शक्ति

नामांकन शुल्क : 51,000.00/-

न्यूनतम आयु : 18 वर्ष

जीवन साथी : वैकल्पिक

अपनी संतान : वैकल्पिक


अनिवार्य भाषा : हिन्दी एवं अंग्रेजी

शैक्षणिक योग्यता : 10 + 2 या समकक्ष

कंप्यूटर का बेसिक ज्ञान : अनिवार्य


न्यूनतम समय अवधि : 1 वर्ष

निशुल्क मार्गदर्शन : साप्ताहिक (2 घंटा / 1 दिन)

अतिरिक्त मार्गदर्शन : 500.00 / घंटा

वार्षिक मार्गदर्शन शुल्क : 51,000.00/-

सत्य - कर्म

नामांकन शुल्क : 1,51,000.00/-

न्यूनतम आयु : 18 वर्ष

जीवन साथी : अनिवार्य

अपनी संतान : वैकल्पिक


अनिवार्य भाषा : हिन्दी एवं अंग्रेजी

शैक्षणिक योग्यता : 10 + 2 या समकक्ष

कंप्यूटर का बेसिक ज्ञान : अनिवार्य


न्यूनतम समय अवधि : 1 वर्ष

निशुल्क मार्गदर्शन : साप्ताहिक (2 घंटा / 3 दिन)

अतिरिक्त मार्गदर्शन : 500.00 / घंटा

वार्षिक मार्गदर्शन शुल्क : 51,000.00/-

मोक्ष अथवा शांति

नामांकन शुल्क : 2,51,000.00/-

न्यूनतम आयु : 18 वर्ष

जीवन साथी : अनिवार्य

अपनी संतान : अनिवार्य


अनिवार्य भाषा : हिन्दी एवं अंग्रेजी

शैक्षणिक योग्यता : 10 + 2 या समकक्ष

कंप्यूटर का बेसिक ज्ञान : अनिवार्य


न्यूनतम समय अवधि : 1 वर्ष

निशुल्क मार्गदर्शन : साप्ताहिक (2 घंटा / 5 दिन)

अतिरिक्त मार्गदर्शन : 500.00 / घंटा

वार्षिक मार्गदर्शन शुल्क : 51,000.00/-

नामांकन

कर्म ही धर्म है

आध्यात्मिक विश्वविद्यालय में नामांकन से सम्बंधित किसी भी प्रकार की जानकारी वॉट्सऐप संख्या +91 - 82175 77393 पर सन्देश के माध्यम से निशुल्क में प्राप्त कर सकते है एवं नामांकन से सम्बंधित किसी भी प्रकार की जानकारी दूरभाष के माध्यम से प्राप्त करने के लिए प्रति घंटा 500.00/- शुल्क का भुगतान करना अनिवार्य है।